ये परमहंस योगानंद की शिक्षाओं का अद्वितीय और प्रत्यक्ष वृतांत है, जो उनके एक अत्यंत आत्मीय शिष्य ने लिखा है। योगानंद दुनिया के सबसे प्रख्यात और सर्वत्र आदर किए जाने वाले आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं। उनकी ‘एक योगी की आत्मकथा’ ने पश्चिम में आध्यात्मिक जागरूकता को प्रोत्साहित किया और उनकी अपनी जन्मभूमि भारत में आध्यात्मिकता का नवजागरण किया।
लगभग पचास बरस पहले ‘लॉस एंजिल्स, केलिफोर्निया’ के ‘हिल टॉप’ आश्रम में एक अमेरिकी शिष्य अपने गुरु के चरणों में बैठा और निष्ठांपूर्वक उन शब्दों को रिकार्ड करने लगा, जैसा उनके टीचर ने उससे करने को कहा था। परमहंस योगानंद यह जानते थे कि उनका यह शिष्य उनकी शिक्षाओं को दुनिया भर के लोगों तक ले जाएगा।
क्रियानंद अक्सर वहां उपस्थित रहते थे, जब योगानंद अपने निकटतम शिष्यों के साथ एकांत में वार्तालाप करते थे, अपने अतिथियों से मिलते और उनके सवालों के जवाब देते थे, जब अपनी महत्वपूर्ण शिक्षाओं को लिखवाते और उन पर विचार विमर्श करते थे। योगानंद ने, क्रियानंद को दूसरे भिक्षुओं की जिम्मेदारी सौंपी और वे उनके आध्यात्मिक विकास के लिए उन्हें सलाह देते थे। इन सभी स्थितियों में, क्रियानंद योगानंद जी के शब्द और शिक्षाएं रिकार्ड करते थे, ताकि बहुमूल्य शिक्षाएं और ज्ञान लुप्त न हो जाए बल्कि आने वाली सदियों तक इसे सुरक्षित और संरक्षित रखा जा सके, इससे हमें उनके योगानंद के साथ गुज़ारे गए अंतरंग जीवन की झलकियाँ मिलीं, जो कभी किसी और शिष्य ने साझा नहीं कीं थीं।
इन वार्तालापों में केवल योगानंद जी के वे शब्द ही नहीं थे, जो उन्होंने सबसे पहले उन्हें कहे थे बल्कि वे उनके निकटतम शिष्यों को वह अंतर्दृष्टि भी देते थे, जो पचास सालों से भी अधिक वक्त से उनकी शिक्षाओं का अभ्यास और चिंतन कर रहे थे। इन सभी वार्तालापों से योगानंद फ़िर जीवित हो उठते थे। समय और स्थान मिट जाते थे। हम गुरु के चरणों में बैठकर उनके शब्द सुनते हैं, उनसे ज्ञान प्राप्त करते हैं, उनके हास्यबोध पर प्रसन्न होते हैं और उनके स्नेह से परिवर्तित होने लगते हैं।