स्वामी क्रियानन्द जी परमहंस योगानंद जी के प्रत्यक्ष शिष्य और आनन्द संघ के संस्थापक थे। उनकी सत्य के लिए गहरी तलाश ने उन्हें 1948 में 22 की कम उम्र में परमहंस योगानंद जी की प्रतिष्ठित आध्यात्मिक किताब “‘एक योगी की आत्मकथा’.” को पड़ने की प्रेरणा दी।

शीघ्र ही उन्होंने लेखक को अपना गुरु पहचान लिया और जवान क्रियानन्द ने निश्चय किया कि वे अपना जीवन योगानंद जी की शिक्षाओं का अभ्यास करने और उनका प्रचार करने में समर्पित करेंगे। उनकी पहली भेंट पर, योगानंद जी ने क्रियानन्द जी को अपना शिष्य स्वीकार किया।

योगानंद जी के साथ निजी परिक्षण


फिर स्वामी क्रियानन्द जी ने परमहंस योगानंद जी के साथ जीवन बिताया, योगानंद जी की 1952 में समाधी तक। योगानंद जी ने शीघ्र ही क्रियानन्द जी को कई सारीं जिम्मेवारियां सौंपी। योगानंद जी ने स्वामी क्रियानन्द जी के साथ कई घंटों भर बिताये, क्रियानन्द जी की समझ का मार्ग दर्शन करने के लिए और उनके भविष्य में आने वाले महान कार्य के लिए निर्देश दिए। योगानंद जी उनसे अक्सर कहते थे: “तुम्हे एक महान कार्य करना है।”

आनन्द संघ की स्थापना

वामी क्रियानन्द जी ने 1968 में आनन्द संघ की स्थापना की, अपने गुरु के “विश्वव्यापी भाईचार्य समुदाय” की दृष्टि को हकीकत बनाने के लिए। इन आध्यात्मिक समुदायों में आध्यात्मिक जीवन में रूचि रखने वाले लोग, चाहे गृहस्थ हों या सन्यासी, सब साथ में रह सकें और घर, प्रार्थना स्थल, विद्यालय, दफ्तर एक जगह हों; सभी एक दूरसे के आध्यात्मिक सफर में सहायता करें, सरल जीवन जीयें और ऊँचे सोच के रहें।

आज आनन्द संघ एक विश्वव्यापी आंदोलन है जोकि अनेक देशों में है और कई हज़ारों लोगो को मदद करता है: समुदायों, ध्यान मंडलियों और इंटरनेट पर दी गयीं प्रस्तुतियों के द्वारा।

लेखन, संपादन और भाषण देना

साथ बिताये समय में योगानंद जी अपने इन शिष्य से कहते थे: “तुम्हारा कार्य लेखन, संपादन और भाषण देना” है। स्वामी क्रियानन्द जी ने अपने गुरु की शिक्षाओं पर हज़ारों भाषण दिए और 140 से अधिक किताबें लिखीं, यह दर्शाने के लिए कि, कैसे योगानंद जी की शिक्षाएँ जीवन के हर पहलू को आध्यात्मिक बना सकतीं हैं।


ऊँची चेतना के लिए संगीत

स्वामी क्रियानन्द जी ने कुछ 400 संगीतों को रचा था जिनके माध्यम से ऊँची चेतना की अभिव्यंजना हो सके। सुनने वाले अधिकतर पातें है कि वे प्रत्यक्ष रूप से आत्मबोध की शिक्षा को अपनी ऊँची चेतना में ग्रहण कर रहें हैं।

जीवन के उत्तरकालीन दिन

एक आंतरिक बुलावे के कारन 2003 में स्वामी क्रियानन्द जी भारत आए आत्मबोध की शिक्षाओं का योगानंद जी के जन्मभूमि में प्रचार करने के लिए। 2009 में अपने गुरु के इस नए युग, द्वापर, में ‘संन्यास’ के स्पष्टीकरण से प्रेरित हो, स्वामी क्रियानन्द जी ने नयास्वामी की सभा को स्थापित किया। यह सभा सकारात्मक संन्यास पर ध्यान देती हैं और औपचारिक संन्यास का दरवाज़ा हर पथ के आध्यात्मिक जिज्ञासु के लिए खोलती है, चाहे वो गृहस्थ हो या ब्रह्मचारी।

उनकी विरासत

लाखों आध्यात्मिक जिज्ञासु जिन्होंने स्वामी क्रियानन्द जी के महान, अपने गुरु की भक्ति में किया कार्य, से उठान और आध्यात्मिक शक्ति को महसूस किया: उनके लेखन, संगतों, सत्संगों, दिव्य दोस्ती और शिष्य के उदाहरण से, वह सभ लोग उनकी विरासत हैं।

स्वामी क्रियानन्द जी 21 अप्रैल, 2013, में 86 की उम्र में इस दुनिया से गुज़र गए। योगानंद जी ने उनसे कहा था: “इस जीवन के अंत में ईश्वर से तुम्हारी भेंट होगी।

स्वामी क्रियानन्द जी का शरीर आनन्द संघ के अमरीका के समुदाय में है, जहाँ उनका महान कार्य शुरू हुआ था, एक सुन्दर प्रार्थना स्थल में जिसको आभारी भक्तों ने बनाया है। इस प्रार्थना स्थल का नाम है ‘मोक्ष मंदिर‘ और इस्पे योगानंद जी की कविता ‘समाधी‘ की आखरी पंक्ति अंकित है:

“”हास्य का एक छोटा सा बुलबुला मैं, स्वयं आनन्द का सागर बन गया हूँ।”.”