महावतार बाबाजी
“जब भी कोई श्रद्धा और आदर से बाबाजी का नाम उच्चारित करता है, तभ वह भक्त उसी क्षण उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।”
-लाहिड़ी महाशय जी
इस गुरुओं की वंशाली के पहले गुरु, महावतार बाबाजी हैं, उनकी उम्र नामालूम है, और वे कुछ बहुत उन्नत शिष्यों के साथ हिमालयों में रहतें हैं। योगानंद जी उन्हें ‘बाबाजी-कृष्ण’ कहलाते थे, और कहते थे कि वे पूर्व जन्मों में कृष्ण भगवान थे। यह देखते हुए कि इस वैज्ञानिक युग में लोग महान ज्ञान प्राप्त करने के लिए तैयार थे, बाबाजी ने अपने शिष्य, लाहिड़ी महाशय, को विश्व को क्रिया योग के ध्यान-विज्ञान से फिर से परिचय करने का निर्देश दिया।
योगानंद जी ने अपनी, ‘एक योगी की आत्मकथा’, में इन “अमर गुरु” के बारे यह वर्णन दिया है:
बाबाजी के परिवार या जन्मस्थल के बारे कोई भी जानकारी, जो की इतिहासकारों को प्यारी होगी, नहीं खोजी गयी है। आमतौर पर उनकी भाषा हिंदी होती है, परन्तु वे किसी भी भाषा में आसानी से वार्तालाप कर सकतें हैं। उन्होंने ‘बाबाजी’ जैसा एक साधारण नाम ग्रहण किया हैं, कई अन्य आदरणीय नाम जोकि लाहिड़ी महाशय के शिष्यों द्वारा दिए गए हैं: महामुनि बाबजी, महाराज, महायोगी, त्रयम्बक बाबा और शिव बाबा।
इन अमर गुरु के शरीर पर कोई भी उम्र द्वारा उत्पन चिह्न नहीं हैं, वे पचीस साल के नौजवान से बड़े नहीं लगते। गोरे, मद्य संरचना और कद के, बाबाजी का सुन्दर और शक्तिशाली शरीर एक स्पष्ट आभा फैलाता हैं। उनकी आँखें काली, शांत और कोमल हैं; उनके लम्बे चमकदार केश ताम्बे के रंग के हैं। उनके खभी न ख़राब होने वाले शरीर को खाने की ज़रुरत नहीं हैं; यह गुरु शायद ही कभी खातें हैं। मिलने वाले भक्तों के प्रति सामाजिक विनम्रता के कारण वे कभी कबार फल या दूध और घी में उबले चावल स्वीकार करतें हैं।
1920 में परमहंस योगानंद जी को दिव्य दृष्टि में क्रिया योग की शिक्षाओं का पश्चिमी देशों में दूत नियुक्त किया गया। योगानंद जी ने ईश्वर से गहरी प्रार्थना करने का निश्चय किया, इस उद्देश्य से कि उन्हें अपने निकट आगए महान कार्य करने के लिए ईश्वर से विश्वास और आशीर्वाद मिले। उत्तर में बाबाजी खुदी योगानंद जी के सामने प्रकट हुए, उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ रक्षा का वादा दिया।
बाबाजी ने योगानंद जी से कहा:
“तुम वही हो जिसे मैंने क्रिया योग की शिक्षा का पश्चिमी देशों में प्रचार करने के लिए चुना हैं। बहुत पहले मैं तुम्हारे गुरु युक्तेश्वर से कुम्भ मेले में मिला था; मैंने उनसे कहा कि मैं तुम्हे उनके पास प्रशिक्षण के लिए भेजूँगा। क्रिया योग जोकि ईश्वर का बोध प्राप्त करने के लिए एक वैज्ञानिक तकनीक हैं, आखिर में सभी देशों में फैल जाएगी, और मानव के निजी, अतिश्रेष्ट परमपिता के बोध से देशों के बीच मधुर सम्बन्ध बनाने में मदद करेगी।”