आनन्द संघ की स्थापना 1969 में स्वामी क्रियानन्द जी ने की, जोकि परमहंस योगानंद जी के प्रत्यक्ष शिष्य थे। परमहंस योगानंद जी पूर्ण रूप से आत्मबोध कर चुके गुरुओं की वंशावली में आखरी गुरु थे।

हमारी आध्यात्मिक वंशावली

परमहंस योगानंद

परमहंस योगानंद जी, (1983-1952), पहले भारतीय योग गुरु थे जिन्होंने पश्चिमी देशों में अपना स्थायी निवास बनाया।

योगानंद जी का नाम मुकुन्दा लाल घोष था, और वे एक धनी बंगाली परिवार में भारत के गोरखपुर शहर में जन्मे थे। बचपन से उनका स्वभाव आध्यात्मिकता की ओर था। उनका मनपसंद मनोरंजन था संतो को मिलना, और उनकी आध्यात्मिक तलाश उनको उनके गुरु, सेरामपुर के स्वामी श्री युक्तेश्वर जी, तक ले गयी। अपने गुरु के अंतर्गत प्रशिक्षण बदौलत वे केवल 6 महीनों में समाधी, मतलब ईश्वर के साथ अप्रतिबंधित एकता, को प्राप्त कर लिया।

स्वामी श्री युक्तेश्वर जी

भारत के सेरामपुर शहर के स्वामी श्री युक्तेश्वर जी (1855 – 1936), परमहंस योगानंद जी के गुरु थे। उन्होंने योगानंद जी को उनके पश्चिमी देशों में किये जाने वाले महान कार्य के लिए प्रशिक्षण दिया।

वामी श्री युक्तेश्वर जी परमहंस योगानंद जी के गुरु थे। उनका पारिवारिक नाम प्रिया नाथ करार था। विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद, उनका विवाह हुआ, एक बेटी भी हुई, और 1884 में वे लाहिड़ी महाशय के शिष्य बने। अपनी पत्नी के इस दुनिया से जाने के बाद, उन्होंने संन्यास लिया और उन्हें नाम मिला श्री युक्तेश्वर गिरी। श्री युक्तेश्वर जी ने दो आश्रमों की स्थापना की, एक है सेरामपुर में जोकि कोलकाता के पास है, और एक पूरी, ओडिशा में। यह आश्रम परमहंस योगानंद जी के प्रशिक्षण के और उनके ‘एक योगी की आत्मकथा’ में लिखित कई अनुभवों के पृष्ठभूमि थे।

लाहिड़ी महाशय

लाहिड़ी महाशय जी (1828 – 1895) वे संत थे जिन्होंने क्रिया योग के प्राचीन विज्ञान को केवल संसार को त्यागे हुए साधुओं को ही नहीं बल्कि सभी निष्ठावान भक्तों को उपलब्ध किया।

लाहिड़ी महाशय स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरी के गुरु थे, और इसलिए वे परमहंस योगानंद जी के परमगुरु थे। लाहिड़ी महाशय अपने गुरु महावतार बाबाजी द्वारा क्रिया योग की शिक्षा का विश्वभर में प्रचार करने लिए चुने गए थे । एक पूर्ण रूप से सिद्ध आत्मा, लाहिड़ी महाशय फिर भी शादी शुदा थे, और उनके ऊपर और कई जिम्मेवारियाँ थीं। उनका सद्भावपूर्ण जीवन आशा और प्रेरणा का आकाशदीप बना, सांसारिक जिम्मेवारियों वाले लोगों को यह दर्शाने के लिए कि कैसे वे भी आत्मबोध के पथ पर चल सकें।

महावतार बाबाजी

वे बाबाजी थे, जिनको बाबाजी-कृष्ण भी कहलतें हैं, जिन्होंने क्रिया योग के प्राचीन विज्ञान को मानवता से पुनः परिचय करवाया, क्युकि, योगानंद जी के अनुसार, अन्धकार के युग में “पुजारियों की गोपनीयता और मनुष्यों की अरुचि के कारण यह पवित्र ज्ञान धीरे धीरे अप्राप्य हो गया”।

इस गुरुओं की वंशाली के पहले गुरु, महावतार बाबाजी हैं, उनकी उम्र नामालूम है, और वे कुछ बहुत उन्नत शिष्यों के साथ हिमालयों में रहतें हैं। योगानंद जी उन्हें ‘बाबाजी-कृष्ण’ कहलाते थे, और कहते थे कि वे पूर्व जन्मों में कृष्ण भगवान थे। यह देखते हुए कि इस वैज्ञानिक युग में लोग महान ज्ञान प्राप्त करने के लिए तैयार थे, बाबाजी ने अपने शिष्य, लाहिड़ी महाशय, को विश्व को क्रिया योग के ध्यान-विज्ञान से फिर से परिचय करने का निर्देश दिया।

ईसा मसीह

आनन्द संघ के वेदी पर ईसा मसीह की तस्वीर क्यों लगाई जाती है? आनन्द के गुरुओं की वंशावली और ईसा मसीह के बीच क्या संबंध है? क्या वे ईश्वर के एकमात्र संतान थे? वे असलियत में कौन थे?

परमहंस योगानंद जी ने कई बार दोहराया कि उनके महान कार्यों में से एक था “मौलिक ईसाई धर्म” को पुनर्जीवित करना जैसे येशु ने सिखाया था और “मौलिक योग” को पुनर्जीवित करना जैसे कृष्ण ने सिखाया था, और इन दोनों के बीच की बुनियादी एकता को दर्शाना। योगानंद जी ने घोषित किया कि बाबाजी-कृष्ण और ईसा मसीह ने मिलकर योगानंद जी द्वारा आत्मबोध की शिक्षा को लोगों तक पहुँचाया जिससे लोग सीखें कैसे ईश्वर के साथ दिव्य ध्यान के माध्यम से प्रत्यक्ष निजी सम्बन्ध बनाना है। योगानंद जी के अनुसार, ईसा मसीह खुद अपने भक्तों को क्रिया योग जैसी तकनीक सिखाते थे।