“ये परमहंस योगानंद के शिष्य हैं!”
स्वामी क्रियानंद जी ने अपनी आत्मकथा एक नया पाथ (The New Path) में लिखा:
“इन साठ वर्षों में, जब से मैं इस मार्ग पर हूँ, मुझे एक भी ऐसा उदाहरण याद नहीं आता जब परमहंस योगानंद जी के किसी शिष्य को वास्तविक आवश्यकता के समय संरक्षण न मिला हो।”
अब मुझे भी परमहंस योगानंद जी का शिष्य बने लगभग पचास वर्ष हो गए हैं। मैंने भी बार-बार वही संरक्षण देखा है — अपने जीवन में और कई मित्रों के जीवन में। कभी-कभी वह संरक्षण जीवनरक्षक होता है। अक्सर वह कोमल तरीकों से आता है — कृपा की छुअन, जब स्थिति अत्यावश्यक न हो।
हाल ही में सिंगापुर की एक यात्रा, जहाँ क्रिया दीक्षा हेतु गया था, मुझे गुरु की सहायता की एक अद्भुत चमत्कारी घटना की याद दिला गई।
कुछ वर्ष पहले, मैं योगानंद जी के शिक्षाओं को साझा करने के लिए सिंगापुर जा रहा था। मुंबई एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन काउंटर के पास पहुँचते ही मुझे यह देखकर झटका लगा कि मैं भारत का वीज़ा दस्तावेज़ भूल गया हूँ। उनके बिना मैं देश से बाहर नहीं जा सकता था। वे कागज़ मेरे घर पर थे — छह घंटे की दूरी पर। उन्हें लाकर उड़ान पकड़ना असंभव था।
मेरी प्रार्थनाएँ योगानंद जी से एक मिश्रण थीं — हताशा, संकोच, और क्षमा याचना — उन्हें निराश करने के लिए, और सिंगापुर में प्रतीक्षा कर रहे लोगों को भी। मेरे सहयात्री, नयास्वामी आदित्य जी, पहले ही एक अधिकारी से बात कर रहे थे। तभी एक अन्य अधिकारी — पूरे विभाग के प्रमुख — हर काउंटर पर निरीक्षण करते हुए वहाँ पहुँचे।
मैं आदित्य जी के पास गया और निजी रूप से अपनी स्थिति बताई। विभाग प्रमुख ने हमारी ओर इशारा कर उस अधिकारी से कुछ कहा। मैंने आदित्य जी से पूछा कि उन्होंने क्या कहा। वे शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं:
“इन दोनों का ध्यान रखना। ये परमहंस योगानंद जी के शिष्य हैं!”
अपने जीवन में मैंने लगभग साठ बार, चौदह देशों में इमिग्रेशन काउंटर पार किए हैं — लेकिन यह पहली बार था जब मुझे मदद की सख्त ज़रूरत थी। और वह मदद तुरंत, चमत्कारिक रूप से मिली। केवल वही वरिष्ठ अधिकारी नियमों को लचीला कर मुझे जाने की अनुमति दे सकते थे। उन्होंने मुझसे कहा कि भारत लौटने से पहले समस्या को ठीक कर लूँ।
बाद में उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले मुंबई में आनंदा के एक बड़े कार्यक्रम में वे उपस्थित थे। उस कार्यक्रम की शुरुआत में कुछ ब्रह्मचारी — जिनमें आदित्य जी और मैं भी थे — ने कीर्तन किया था। कार्यक्रम में हमारी कोई अन्य भूमिका नहीं थी, फिर भी सैकड़ों लोगों में उन्होंने हमें पहचान लिया महीनों बाद, हमारे साधारण यात्रा वस्त्रों में भी। उन्होंने हमें किसी बाहरी भूमिका या पद से नहीं देखा, बल्कि केवल परमहंस योगानंद जी के शिष्यों के रूप में पहचाना।
आप स्वयं को किस रूप में पहचानते हैं? एक क्रिया योगी के रूप में? एक ध्यान साधक के रूप में? किसी धर्म या संस्था के अनुयायी के रूप में? किसी समुदाय के सदस्य के रूप में? या केवल एक शिष्य के रूप में — शायद परमहंस योगानंद जी के?
स्वामी क्रियानंद जी — मेरे जीवन में शिष्यत्व के सबसे महान उदाहरण — स्वयं को सबसे पहले और सबसे अधिक परमहंस योगानंद जी का शिष्य मानते थे। यही उनकी शक्ति का स्रोत था और मुक्ति का मार्ग भी। मैंने उन्हें कभी किसी सभा में स्वयं को क्रिया योगी, शिक्षक, ध्यान साधक या लेखक के रूप में प्रस्तुत करते नहीं सुना।
अपनी पुस्तक (Sadhu Beware)! में उन्होंने शिष्यत्व और गुरु से अनुकूलन (attunement) की सर्वोच्च महत्ता पर कहा:
“अनुकूलन (attunement), मैं विश्वासपूर्वक कहता हूँ, मार्ग की पहली और सबसे बड़ी आवश्यकता है। यही त्याग का अंतिम लक्ष्य है। यही ईश्वर को पाने का एकमात्र मार्ग है।”
जब हम अपने जीवन में शिष्यत्व और गुरु से अनुकूलन (attunement) को प्राथमिकता देते हैं, तो सब कुछ सर्वोत्तम रूप से घटित होता है। कभी जीवनरक्षक चमत्कारों के रूप में। कभी कोमल, व्यक्तिगत कृपा की छुअन के रूप में। और हमेशा एक दिव्य संरक्षण की निरंतर धारा के रूप में। सबसे बढ़कर, गुरु के प्रति निरंतर गहराता हुआ शिष्यत्व — यही ईश्वर को पाने का एकमात्र मार्ग है।
नयास्वामी देवर्षि
नयास्वामी देवर्षि जी आनंद संघ से 48 वर्षों से जुड़े हैं एवं अपनी सेवा दे रहे हैं। वे (Kriya Yoga: Spiritual Awakening for the New Age) पुस्तक के लेखक भी हैं — यह पुस्तक नए और अनुभवी क्रियाबानों के लिए एक व्यावहारिक और प्रेरणादायक मार्गदर्शिका है, जो आत्म-साक्षात्कार की यात्रा को गहराई देने के लिए अंतर्दृष्टियाँ प्रदान करने और वास्तविक जीवन की कहानियाँ प्रस्तुत करती है।
वर्ल्डवाइड आनंदा क्रिया संघ के निदेशक के रूप में न्यास्वामी देवर्षि जी ने स्नेहपूर्वक हजारों साधकों को क्रिया योग के अभ्यास में दीक्षित और मार्गदर्शन प्रदान किया है। वर्तमान में वे चंडीगढ़ में स्थित आनंद संघ के मॉनेस्ट्री का नेतृत्व भी कर रहे है।







