माँ गिलहरी और समुद्र 

अक्टूबर 2, 2025

एक बार एक माँ गिलहरी ने समुद्र के किनारे एक पेड़ पर अपने तीन नवजात शिशुओं के लिए एक घोंसला बनाया। एक दिन समुद्र की गहराई में एक भयंकर तूफान आया, जिससे तेज लहरें उठीं और किनारे से टकराईं। एक शक्तिशाली लहर रेत पर बहती हुई उस पेड़ तक जा पहुंची जहां घोंसला था, और तीनों बच्चों को बहाकर समुद्र में ले गई।

दृढ़ निश्चय के साथ, माँ गिलहरी ने समुद्र से मांग की, “मेरे बच्चों को तुरंत मुझे लौटा दो!” सुनकर समुद्र हँसा। 

निडर होकर, माँ गिलहरी ने शक्तिशाली समुद्र को धमकी दी: “यदि तुम मेरे बच्चों को वापस नहीं करोगे, तो मैं अपनी पूंछ को तुम्हारे पानी में डुबो दूँगी और इसे रेत पर तब तक निचोड़ूँगी जब तक कि तुम पूरे सूख न जाओ!”  समुद्र फिर से हँसा।

कार्य की विशालता से बेपरवाह, माँ गिलहरी ने अपनी छोटी सी पूंछ को समुद्र में डुबो दिया, और उसे बूंद-बूंद करके, रेत पर निचोड़ कर सुखा दिया। जैसे-जैसे घंटे बीतते गए, समुद्र ने उसकी दृढ़ता को देखा क्योंकि वह निरंतर अपना कार्य कर रही थी। उत्सुक होकर, समुद्र ने सोचा: वह ऐसा कब तक कर पाएगी? 

अंततः उसकी अदम्य इच्छाशक्ति को पहचानकर, समुद्र ने नरमी दिखाई। “ठीक है, अब तुम अपने बच्चों को वापस पा सकती हो। एक ऊंची लहर आई और तीनों चीखती-चिल्लाती, छटपटाती गिलहरियों को उनकी कृतज्ञ माँ के पास वापस ले आयी।

माँ गिलहरी हम सभी के लिए एक आदर्श हो सकती है। जब हम दिल्ली में थे, तब परमहंस योगानंद चैरिटेबल ट्रस्ट – आनंद इंडिया द्वारा संचालित एक सेवा संगठन, जो वृंदावन में बेघर विधवाओं की मदद के लिये है, की दसवीं वर्षगांठ पर एक उत्सव मनाया गया। यह चार आश्रम गृह चलाता है जो परित्यक्त, वृद्ध और निराश्रित महिलाओं को आश्रय, भोजन और चिकित्सा-देखभाल प्रदान करता है। घरों के अलावा तीन हजार अन्य गरीब ‘विधवा-माताओं’ और साधुओं की जरूरतें पूरी की जा रही हैं। ट्रस्ट के लिए मिशन स्टेटमेंट यह लक्ष्य रखता है कि सभी वृद्ध, परित्यक्त और निराश्रित आत्माएं गरिमा और आत्म-सम्मान का जीवन जीने की अधिकारी हैं।

कर्मचारियों के सामने यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का कार्य है, जरूरतमंदों की संख्या लगातार  बढ़ती जा रही है। फिर भी सेवा करने वाले लोग अडिग रहे हैं, और महामारी के दौरान भी अपने प्रयासों को जारी रखा है, जब वृंदावन में स्वच्छता की स्थिति बहुत खराब थी। घरों और झोपड़ियों में जाकर, उन्होंने जरूरतमन्द लोगों को ढूंढा, जिन्हें चिकित्सा, देखभाल, भोजन और बिस्तर की आवश्यकता थी, और उन्हें वह सब उपलब्ध कराया।  

पिछले दो वर्षों से यमुना नदी में हर साल बाढ़ आने से इस क्षेत्र में  उनकी चुनौती और बढ़ गईं,  जिससे गरीबों के साथ-साथ कुछ कर्मचारियों के घर भी पूरी तरह से जलमग्न हो गए। बाढ़ग्रस्त शहर में हवा से भरे राफ्ट में यात्रा करते हुए, कर्मचारियों ने छतों पर फंसे लोगों को पीने का पानी, भोजन और कंबल पहुंचाए। अनुमान है कि उन्होंने हजारों लोगों की जान बचाई है। 

ऐसी करुणा हम सभी के लिए एक उदाहरण है। आज की दुनिया में, गिलहरी के बच्चों को बहा ले जाने वाला समुद्र हमें एक अलग रूप में धमकी दे रहा है: यह स्वार्थ, लालच, सत्ता-लोलुपता और दूसरों की पीड़ा के प्रति उदासीनता की चेतना है। हालांकि यह जटिल प्रतीत होता है, किन्तु यह महासागर उन साहसी आत्माओं को नहीं हरा सकता, जो सभी बाधाओं के खिलाफ दूसरों की पीड़ा को कम करने के लिए दृढ़ हैं। 

माँ गिलहरी की तरह, जब हम दृढ़ संकल्प, करुणा और दूसरों की सेवा को अपने जीवन में सर्वोपरि रखते हैं, तो चमत्कार घटित हो सकते हैं। मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि हर जगह के भक्त, ईश्वर और उनकी सभी संतानों के प्रति अपने प्रेम में एकजुट हों। उदासीनता और निर्दयता की लहर के विरुद्ध दृढ़ता के साथ खड़े होकर, हम एक नए प्रकार का महासागर बना सकते हैं जो ईश्वर के प्रेम की शक्ति से भरा हो और, हमको निगलने की धमकी देने वाले,गहरे पानी को बहा ले जाए। आइए, हम सब मिलकर दूसरों की सेवा करें, उनके लिए प्रार्थना करें, और उनके दुखों को नजरंदाज ना करें। आइए हम ऐसे तरीके खोजें जिनसे हम ईश्वरीय प्रेम के लिए माध्यम बन सकें। 

स्वामी क्रियानंद के सरल गीत, “Joined In Prayer” के बोल हमारे आगे बढ़ने के मार्ग के सार को प्रस्तुत करते हैं: 

Joined in prayer, we worship Thee:
     Rays of light that seek the sun.
Many drops do make a sea:
     Thus our love, when joined as one!
     Thus our love, when joined as one!

अंततः ईश्वर का प्रेम ही एकमात्र वास्तविकता है। हम सब  मिलकर अंधकार को दूर कर सकते हैं और लोगों को जीवन के सच्चे उद्देश्य के प्रति जागरूक कर सकते हैं: ईश्वर के लिए जीना, और जिनसे भी हम मिलते हैं, उन तक ईश्वर के प्रेम का संचार करने का प्रयास करना। 

दृढ़ संकल्प और आनंद के साथ,

नयास्वामी देवी

नयास्वामी देवी

नयास्वामी देवी पहली बार 1969 में आनंद के संस्थापक स्वामी क्रियानंद से मिलीं और उन्होंने अपना जीवन आध्यात्मिक पथ को समर्पित कर दिया। 1984 में, उन्होंने और उनके पति ज्योतिष ने आनंद संघ वर्ल्डवाइड के आध्यात्मिक निदेशक के रूप में एक साथ सेवा शुरू की। 2013 में क्रियानंदजी के देहांत के बाद से, ज्योतिष और देवी ने योगानंद द्वारा उन्हें सौंपे गए महान कार्य को आगे बढ़ाया है।

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